लिफाफा कांड में घिरे आइपीएस मधु कुमार, मधुकुमार को लंबे समय से मिला हुआ है राजनीतिक संरक्षण !

लिफाफा कांड में घिरे आइपीएस मधु कुमार, मधुकुमार को लंबे समय से मिला हुआ है राजनीतिक संरक्षण !
भोपाल - मध्य प्रदेश में 'लिफाफे' लेने के बाद परिवहन आयुक्त पद से हटाए गए वी. मधुकुमार को लंबे समय से राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। इसी कारण वह जबलपुर में डीआइजी से पदोन्नत होकर वहीं आइजी पद पर भी बरसों जमे रहे। बताया जाता है कि दक्षिण भारत के रहने वाले एक पूर्व प्रदेश संगठन महामंत्री का बाबू को वरदहस्त है। इसी के चलते 2016 में सिंहस्थ से ठीक पहले मधुकुमार को जबलपुर से हटाकर उज्जैन जोन की कमान सौंप दी गई। आइजी पद से अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी) पद पर पदोन्नत होने के बाद भी वह उज्जैन में आइजी पद पर ही जमे रहे।
एमपी के पूर्व डीजीपी सुभाषचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि राजनीतिक संरक्षण के बाद भी शासन-प्रशासन की अधिकारियों-कर्मचारियों की पदस्थापना में भूमिका रहती है। हर अधिकारी को मैदानी और कार्यालयीन कामकाज का अनुभव मिलता रहे, ऐसी व्यवस्था की जाना चाहिए। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं हो। अधिकारियों के कामकाज के बंटवारे को लेकर सरकार को बताकर सभी अधिकारियों को बराबर काम का मौका देना चाहिए।
एक ही जगह डीआइजी और आइजी भी रहे मधु कुमार !
मधुकुमार का जो वीडियो वायरल हुआ है, वह आइपीएस लॉबी की आपसी लड़ाई का नतीजा बताया जा रहा है। इसकी वजह परिवहन आयुक्त का पद है। मप्र सरकार उन चेहरों को भी चिन्हित करने की कोशिश कर रही है, जो वीडियो में मधु कुमार को लिफाफा देते हुए दिखाए जा रहे हैं। गौरतलब है कि 1991 बैच के आइपीएस मधुकुमार को एक गेस्ट हाउस में पुलिसकर्मियों से लिफाफे लेते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद शनिवार रात उनका तबादला कर पुलिस मुख्यालय में कर दिया गया है। हालांकि इन लिफाफों में क्या है, इसकी अभी कोई जानकारी नहीं मिली है। राज्य सरकार ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं।जबलपुर में भी लंबे समय तक जमे रहे !
भाजपा की पूर्व की सरकारों में भी मधु कुमार का जलवा बरकरार रहा। 2009 के आसपास मधुकुमार को डीआइजी जबलपुर बनाया गया था। कुमार को जबलपुर ऐसा पसंद आया कि वे आइजी पद पर पदोन्नत होने के बाद भी वहीं जमे रहे और 2016 में वहां से अपनी मनपसंद पोस्टिंग उज्जैन में पाई।माने की वरिष्ठता के बावजूद परिवहन आयुक्त बनाए गए !
पिछले साल परिवहन आयुक्त के पद पर पदस्थापना को लेकर आइपीएस अफसर संजय माने और वी. मधुकुमार के बीच खूब खींचतान चली थी। दोनों परिवहन आयुक्त की दौड़ में शामिल थे। वरिष्ठता के हिसाब से संजय माने दावेदार थे, लेकिन मधु कुमार सफल रहे। लगभग साल भर पहले डॉ. शैलेन्द्र श्रीवास्तव परिवहन आयुक्त थे। शैलेंद्र श्रीवास्तव की इच्छा थी कि वे परिवहन आयुक्त पद से ही रिटायर हो जाएं। इधर पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन में तत्कालीन एडीजी संजय वी. माने 1989 बैच के अफसर होने के बाद भी परिवहन आयुक्त नहीं बन पाए थे। तभी से तीनों अफसरों के बीच भारी अनबन चल रही थी। श्रीवास्तव तो अब रिटायर भी हो चुके हैं।लोकायुक्त के विरोध के बाद भी पा ली पोस्टिंग !
सरकार किसी की भी रही हो लेकिन मधुकुमार हमेशा पावरफुल रहे। ईओडब्ल्यू में पदस्थ थे तो ई-टेंडरिंग की जांच शुरू की, वहां से सरकार का भरोसा जीत कर वह लोकायुक्त संगठन में पहुंच गए। तब लोकायुक्त एनके गुप्ता के विरोध जाहिर करने के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कुमार की पदस्थापना में कोई फेरबदल नहीं किया। लोकायुक्त एनके गुप्ता ने बिना सहमति के मधुकुमार की पोस्टिंग का विरोध किया था। लोकायुक्त संगठन में तत्कालीन एडीजी रवि कुमार गुप्ता को एडीजी नारकोटिक्स बनाए जाने पर लोकायुक्त गुप्ता ने कहा था कि उनकी सहमति नहीं ली गई इसलिए वे रिलीव नहीं होंगे। पर सरकार टस से मस नहीं हुई और मधुकुमार अपनी मनचाही जगह पहुंच गए। यहीं से उन्होंने परिवहन आयुक्त के पद पर छलांग लगाई थी।एमपी के पूर्व डीजीपी सुभाषचंद्र त्रिपाठी ने कहा कि राजनीतिक संरक्षण के बाद भी शासन-प्रशासन की अधिकारियों-कर्मचारियों की पदस्थापना में भूमिका रहती है। हर अधिकारी को मैदानी और कार्यालयीन कामकाज का अनुभव मिलता रहे, ऐसी व्यवस्था की जाना चाहिए। किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं हो। अधिकारियों के कामकाज के बंटवारे को लेकर सरकार को बताकर सभी अधिकारियों को बराबर काम का मौका देना चाहिए।
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