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सन 1962 में जब इस नेता ने भरी संसद में नेहरू को गंजा सिर दिखाते हुए कहा था-'ये भी दे दूं चीन को' !

सन 1962 में जब इस नेता ने भरी संसद में नेहरू को गंजा सिर दिखाते हुए कहा था-'ये भी दे दूं चीन को' !

जवाहर लाल नेहरू ने संसद में ये बयान दिया कि, अक्साई चिन में तिनके के बराबर भी घास तक नहीं उगती, वो बंजर इलाका है।

इस तरह की डिबेट पार्लियामेंट में कभी-कभी ही हुआ करती हैं और होती भी हैं तो सदियां याद करती हैं। 1962 के युद्ध को लेकर संसद में काफी बहस हुई। उन दिनों अक्साई चिन चीन के कब्जे में चले जाने को लेकर विपक्ष ने हंगामा काट रखा था। लेकिन नेहरू को उम्मीद नहीं थी कि उनके विरोध में सबसे बड़ा चेहरा उनके अपने मंत्रिमंडल का होगा, महावीर त्यागी का। जवाहर लाल नेहरू ने संसद में ये बयान दिया कि "अक्साई चिन में तिनके के बराबर भी घास तक नहीं उगती, वो बंजर इलाका है।"

सन 1962 में जब इस नेता ने भरी संसद में नेहरू को गंजा सिर दिखाते हुए कहा था-'ये भी दे दूं चीन को' !

अंग्रेजी फौज का एक अधिकारी, जो इस्तीफा देकर स्वतंत्रता सेनानी बना और देश आजाद होने के बाद मंत्री बन गया। भरी संसद में महावीर त्यागी ने अपना गंजा सिर नेहरू को दिखाया और कहा- यहां भी कुछ नहीं उगता तो क्या मैं इसे कटवा दूं या फिर किसी और को दे दूं। सोचिए इस जवाब को सुनकर नेहरू का क्या हाल हुआ होगा? ऐसे मंत्री हों तो विपक्ष की किसे जरूरत? लेकिन महावीर त्यागी ने ये साबित कर दिया कि वो व्यक्ति पूजा के बजाय देश की पूजा को महत्व देते थे। महावीर त्यागी को देश की एक इंच जमीन भी किसी को देना गवारा नहीं था, चाहे वो बंजर ही क्यों ना हो और व्यक्ति पूजा के खिलाफ कांग्रेस में बोलने वालों में वो सबसे आगे थे। कांग्रेस के इतिहास में वो पहला नेता था, जिसने पैर छूने की परम्परा पर रोक लगाने की मांग की।

कौन थे महावीर त्यागी? 

महावीर त्यागी का जन्म मुरादाबाद में हुआ था। मेरठ में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अंग्रेजी फौज ज्वॉइन कर ली और उनकी नियुक्ति पर्सिया यानी ईरान में कर दी गई। लेकिन जलियांवाला बाग कांड के बाद देश में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत का ज्वार उठा कि महावीर त्यागी भी फौज की नौकरी से इस्तीफा देकर चले आए। सेना ने उनका कोर्ट मार्शल कर दिया, उसके बाद वो गांधीजी के साथ देश की आजादी के आंदोलन में कूद गए। अंग्रेजों द्वारा वो 11 बार गिरफ्तार किए गए। एक किसान आंदोलन के दौरान जब उनको गिरफ्तार करके यातनाएं दी गईं तो गांधीजी ने इसके लिए अंग्रेजों की आलोचना यंग इंडिया में लेख लिखकर की।

कैसे बनें कांग्रेस के दिग्गज नेता !

हालांकि उस वक्त उन पर इतनी यातनाओं की वजह किसी एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट की व्यक्तिगत नाराजगी थी, जिसने उन पर देशद्रोह का केस लगा दिया था और पूरी कोशिश थी कि महावीर त्यागी की अकड़ को खत्म कर सके, लेकिन एक सैन्य अधिकारी रहने वाले महावीर त्यागी को ना झुकना कुबूल था और ना ही माफी मांगना। वैसे भी वो सब कुछ कुर्बान करने की मंशा के साथ तो देश की आजादी की इस जंग में उतरे थे। हालांकि बाद में अंग्रेजी सरकार ने भी इस मामले से खुद को अलग कर लिया था। वो मजिस्ट्रेट बुलंद शहर का था और त्यागी की पकड़ उस वक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में काफी तगड़ी थी। मजिस्ट्रेट के साथ उनकी तनातनी और होने वाले अत्याचारों के चलते ना केवल जनता की सुहानुभूति उनके साथ हुई बल्कि कांग्रेस के बड़े दिग्गजों की नजर में वो सीधे आ गए। 1921 में गांधी ने उनको लेकर अपनी आवाज उठाई। त्यागी को उस वक्त बुलंद शहर में चार हजार लोगों की एक सभा को सम्बोधित करते वक्त गिरफ्तार कर लिया गया था।

भरी संसद में इसलिए बोल पाए नेहरू से !

जेल में ही उनकी मुलाकात पंडित मोतीलाल नेहरू से हुई और जब एक बार बाप-बेटे के बीच कोई गलतफहमी हुई तो वो महावीर त्यागी ने ही दूर की थी। इसी के चलते नेहरू उन्हें मानते थे और वो भरी संसद में नेहरू के मुंह पर उन्ही के खिलाफ बोल पाए। असहयोग आंदोलन के बाद महावीर त्यागी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी जोर शोर से हिस्सा लिया, ढाई साल जेल में रहे, नतीजतन वो कांग्रेस की चुनावी राजनीति में भी हिस्सा लेने लगे। चुनावी राजनीति में होने के बावजूद महावीर के रिश्ते कांग्रेस के विरोधी क्रांतिकारियों के साथ भी थे, उनके सबसे करीबी थे सचिन्द्र नाथ सान्याल, जिनके संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) में ही चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को आगे बढ़ाया था।

सन 1962 में जब इस नेता ने भरी संसद में नेहरू को गंजा सिर दिखाते हुए कहा था-'ये भी दे दूं चीन को' !

देश की आजादी के बाद वो लोकसभा के लिए चुने गए और नेहरू केबिनेट में उन्हें मिनिस्टर ऑफ रेवेन्यू एंड एक्सपेंडीचर बनाया गया और सबसे दिलचस्प है इस पद पर रहते उनकी एक खास उपलब्धि। हर सरकार कालाधन वापस लाने के लिए वोलंटरी डिसक्लोजर स्कीम लेकर आती है, आपको जानकर हैरत होगी कि वो स्कीम पहली बार देश में महावीर त्यागी ही लेकर आए थे। त्यागी ही वो पहले व्यक्ति थे, जिसने धारा 356 लगाने पर केरल की ईएस नम्बूरापाद की सरकार गिराने का विरोध किया था। त्यागी को वो बयान भी काफी चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस जाति या संप्रदाय की राजनीति में पड़ती है तो वो अपनी कब्र खुद ही खोद लेगी। बहरहाल, बाद में त्यागी को पांचवे फाइनेंस कमीशन का अध्यक्ष भी बनाया गया, वित्त और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में उन्होंने कई सुधार किए। आखिरी समय तक वो राजनीतिक व्यवस्थाओं में सुधार के लिए बयान जारी करते रहे। उन्होंने एक कांग्रेसी होने के नाते ना केवल जयप्रकाश नारायण के आंदोलन पर सवाल उठाए बल्कि इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गई इमरजेंसी पर भी जमकर निशान साधा। आज कांग्रेस में ऐसे नेता कम हैं जो सोनिया या राहुल की भरी महफिल में गलत बात पर खुलकर मुखालफत कर सकें।


विष्णु शर्मा वरिष्ठ पत्रकार हैं। 2016 में अपने ऐतिहासिक विषयों पर लिखे गए ब्लॉग के लिए उन्हें एबीपी न्यूज की ओर से बेस्ट ब्लॉगर एवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। यह लेख उनके ब्लॉग संग्रह से साभार लिया गया है। 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए खबर 72 उत्तरदायी नहीं है।


-ओंकार पाण्डेय की रिपोर्ट!


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