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मजदूरों को ‘माइग्रेंट वर्कर्स’ बुलाने पर इलाहाबाद HC सख्त, यूपी सरकार से मांगा जवाब।

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मजदूरों को 'माइग्रेंट वर्कर्स' बुलाने पर इलाहाबाद HC सख्त, यूपी सरकार से मांगा जवाब।


इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) में अपने घरों को पलायन कर रहे मजदूरों (Laborers) की हालत पर नाराज़गी जताते हुए उन्हें प्रवासी (Migrants) कहे जाने पर सख्त एतराज़ जताया है. अदालत ने कहा है कि मजदूरों को देश के किसी भी राज्य में जाकर रहने वहां रोजगार हासिल करने का संवैधानिक अधिकार है, इसलिए उन्हें प्रवासी नहीं कहा जा सकता।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसा पहली बार हो रहा है, जब देश में रहने वाले मजदूरों को एक से दूसरे राज्य में जाने पर प्रवासी बताया जा रहा है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मजदूरों के मामले में सुनवाई करते हुए अपने लिखित आदेश में सो कॉल्ड माइग्रेंट्स लेबर्स यानी तथाकथित प्रवासी मजदूर कहा है।

अदालत ने दूसरे राज्यों से यूपी आने वाले मजदूरों की खराब हालत पर चिंता जताते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी किया और सरकार से तीन दिन में अपना जवाब दाखिल करने को कहा है. अदालत ने यूपी सरकार से बाहर से आने वाले मजदूरों के इलाज, उनके रोजगार और पुनर्वास के बारे में जवाब तलब किया है।

किसी भी राज्य में रहने का मजदूरों को संवैधानिक अधिकार।

अदालत ने इन तीनों बिंदुओं पर बनाई गई नीतियों, योजनाओं व गाइडलाइन का ब्यौरा पेश करने को कहा है. अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि ग्रामीण इलाकों में कोरोना के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं. अदालत ने मजदूरों के जीविकोपार्जन यानी उनकी रोजी रोटी के इंतजाम समेत कई दूसरे बिंदुओं पर एक लेआउट प्लान तैयार कर उसके बारे में कोर्ट को बताने को भी कहा है।

हाईकोर्ट के वकील रितेश श्रीवास्तव और गौरव त्रिपाठी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने मजदूरों की बदहाली पर नाराज़गी भी जताई. कोर्ट ने कहा, रोजगार पाने के लिए देश के किसी भी राज्य में जाने और वहां रहने का मजदूरों को संवैधानिक अधिकार है. राज्यों की ज़िम्मेदारी है कि मुश्किल वक्त में मजदूरों के खाने व रहने का उचित इंतजाम करें।

कोर्ट ने कहा कि ऐसा व्यवहार न करें, जिससे मजदूर राज्यों को छोड़कर अपने घर जाने को मजबूर हों. मजदूरों को भूखा-प्यासा रखकर उन्हें राज्य छोड़ने को मजबूर न किया जाए. यूपी सरकार की तरफ एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने कोर्ट की नोटिस रिसीव की. यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक जून तक की मोहलत दी गई है।

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