1965 के युद्ध में पाकिस्तान के हौसले पस्त करने वाले वीर अब्दुल हमीद की जयंती पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें।
पाकिस्तान के साथ 1965 की जंग में अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अमेरिकी पैटन टैंकों को नष्ट करने वाले परमवीर चक्र विजेता कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद का आज जन्मदिन है. हमीद भारतीय सेना के वो वीर हैं, जिसने वीरता और साहस का परिचय देते हुए 1965 के भारत-पाक युद्ध में कई पाकिस्तानी पेटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया था ।
वर्ष 1965 में भारत-पाक के बीच हुए युद्घ के दौरान अपने अदम्य साहस का लोहा मनवाने वाले इस जांबाज का जन्म धामूपुर में 1 जुलाई 1933 को एक सामान्य दर्जी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम उस्मान एवं माता का नाम बकरीदन था। अब्दुल हमीद की बचपन से ही देश की सेवा करने की हसरत थी।
अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए वह 22 दिसंबर 1954 को वाराणसी में जाकर फौज में भर्ती हो गए। वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। इस युद्घ में हमीद को अपनी वीरता दिखाने का मौका मिला। इस युद्घ में बहादुरी दिखाने पर उन्हें जवान अब्दुल हमीद की जगह लांस नायक अब्दुल हमीद बना दिया।
अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए वह 22 दिसंबर 1954 को वाराणसी में जाकर फौज में भर्ती हो गए। वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया। इस युद्घ में हमीद को अपनी वीरता दिखाने का मौका मिला। इस युद्घ में बहादुरी दिखाने पर उन्हें जवान अब्दुल हमीद की जगह लांस नायक अब्दुल हमीद बना दिया।
अब्दुल हमीद भारतीय सेना के वो वीर हैं, जिन्होंने वीरता और साहस का परिचय देते हुए 1965 के भारत-पाक युद्ध में कई पाकिस्तानी पेटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया था !
हमीद को 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में खेमकरन सेक्टर में टैंक नष्ट करने के लिए परमवीर चक्र मिला था. बता दें कि ये टैंक पाकिस्तानी सेना के लिए काफी अहम थे और अमेरिका से खरीदे किए गए थे !
अब्दुल हमीद पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहुत ही साधारण परिवार से आते थे लेकिन उन्होंने अपनी वीरता की असाधारण मिसाल कायम करते हुए देश को गौरवान्वित किया था. कहा जाता है कि जब 1965 के युद्ध शुरू होने के आसार बन रहे थे तो वो अपने घर गए थे, लेकिन उन्हें छुट्टी के बीच से वापस ड्यूटी पर आने का आदेश मिला. उस दौरान उनकी पत्नी ने उन्हें खूब रोका, लेकिन वे रुके नहीं. रोकने की कोशिश के बाद हमीद ने मुस्कराते हुए कहा था- देश के लिए उन्हें जाना ही होगा !
अब्दुल हमीद के बेटे जुनैद आलम बताते हैं कि जब वो अपने बिस्तरबंद को बांधने की कोशिश कर रहे थे, तभी उनकी रस्सी टूट गई और सारा सामान ज़मीन पर फैल गया !
उसमें रसूलन बीबी का लाया हुआ मफ़लर भी था जो वो उनके लिए एक मेले से लाईं थीं. रसूलन ने कहा कि ये अपशगुन है. इसलिए वो कम से कम उस दिन यात्रा न करें, लेकिन हमीद ने उनकी एक नहीं सुनी !
'द ब्रेव परमवीर स्टोरीज़' की लेखिका रचना बिष्ट रावत कहती हैं, ''इतना ही नहीं जब वो स्टेशन जा रहे थे तो उनकी साइकिल की चेन टूट गई और उनके साथ जा रहे उनके दोस्त ने भी उन्हें नहीं जाने की सलाह दी. लेकिन हमीद ने उनकी भी बात नहीं सुनी.''
जब वो स्टेशन पहुंचे, उनकी ट्रेन भी छूट गई थी. उन्होंने अपने साथ गए सभी लोगों को वापस घर भेजा और देर रात जाने वाली ट्रेन से पंजाब के लिए रवाना हुए. ये उनकी और उनके परिवार वालों और दोस्तों के बीच आख़िरी मुलाक़ात थी !
एक रिपोर्ट के अनुसार सितंबर 1965, सुबह 9 बजे वे चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों के बीच बैठे थे. उस दौरान उन्हें दूर आते टैंकों की आवाज सुनाई दी. थोड़ी देर में उन्हें वो टैंक दिखाई भी देने लगे. उन्होंने टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार किया, गन्ने की फसल का कवर लिया और जैसे ही टैंक उनकी आरसीएल की रेंज में आए, फायर कर दिया !
कहा जाता है कि उस दौरान उन्होंने 4 टैंक उड़ा दिए थे. उसके बाद भी उन्होंने कई टैंक उड़ाए थे. हालांकि जब वो एक और टैंक को अपना निशाना बना रहे थे, तभी एक पाकिस्तानी टैंक की नजर में आ गए. दोनों ने एक-दूसरे पर एक साथ फायर किया. वो टैंक भी नष्ट हुआ और अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए. इस लड़ाई में पाकिस्तान की ओर से 300 पैटन और चेफीज टैंकों ने भाग लिया था जबकि भारत की और से 140 सेंचुरियन और शर्मन टैंक मैदान में थे !
कहा जाता है कि उस दौरान उन्होंने 4 टैंक उड़ा दिए थे. उसके बाद भी उन्होंने कई टैंक उड़ाए थे. हालांकि जब वो एक और टैंक को अपना निशाना बना रहे थे, तभी एक पाकिस्तानी टैंक की नजर में आ गए. दोनों ने एक-दूसरे पर एक साथ फायर किया. वो टैंक भी नष्ट हुआ और अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए. इस लड़ाई में पाकिस्तान की ओर से 300 पैटन और चेफीज टैंकों ने भाग लिया था जबकि भारत की और से 140 सेंचुरियन और शर्मन टैंक मैदान में थे !
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वीर अब्दुल हमीद पर जारी भारतीय डाक टिकट |
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